सतगुरु के विश्वास की ज्योति जगी हुई है जिस मन में।
इसमें कुछ सन््देह नहीं कि ज्ञान ठहरता उस मन में।
सतगुरु पर ईमान मुकम्मल जिसका भी टिक जायेगा।
निरंकार के होने का अहसास वही कर पायेगा।
रहबर पर विश्वास है तो राही मंजिल को पाता है।
वरना ठोकर ही मिलती है राह भटकता जाता है।
मानव तन में आकर सतगुरु माया में विचरता है।
बीच हमारे रहता बातें हम जैसी ही करता है।
इस निर्गुण इस निरंकार को मुश्किल नहीं है जानना।
है इतना आसान नहीं पर सतगुरु को पहचानना।
जो सतगुरु का बन जाता है उसका ये निरंकार बने।
कहे हरदेव’ मुक्ति का भी बन्दा वो हकदार बने।